चिट्ठियों में चेहरे बात कर सकते हैं, उनमें लिखे शब्दों में सांसों की आहट हो सकती है। उनको लिखने वाले आपके जीवन में सहारा भी बन सकते हैं। होने को और भी बहुत कुछ हो सकता है जैसे कि बिना चुम्बन और शयनकक्ष के प्रेम हो सकता है । झरनों के बाहर और कपड़ों में भी स्त्रियां सुंदर दिख सकती हैं। आर्मी के जवान का पागल और अत्याचारी नहीं होना। और कश्मीरी हिंदुओं के घरों को जलते दिखाने पर सांप्रदायी नहीं बन जाना।
दक्षिण भारत एक ऐसी खाई है जिसने उल्कापिंडों के बरसने के बाद भी भारतीय दर्शन को जीवित रखा हुआ है।
दक्षिण भारत एक ऐसी खाई है जिसने उल्कापिंडों के बरसने के बाद भी भारतीय दर्शन को जीवित रखा हुआ है। जब उत्तर भारत अपनी आत्मा की खोज में लगा हुआ है, दक्षिण भारतीय सिनेमा उसे दिशा दिखा रहा है । बाहुबली के बाद और पहले भी दक्षिण भारत की बहुत फिल्मों ने भारत और विश्व भर में बहुत अच्छा व्यवसाय किया है । विदेशों में दक्षिण भारतीय महिलाओं का साड़ी पहनने में जो आत्म-विश्वास दिखता है, वही आत्मविश्वास मुझे दक्षिण भारतीय फिल्मों में भारतीय संस्कृति को लेकर दिखता है। और शायद यही इन फिल्मों की सफलता का कारण है। बाहुबली शिव का भक्त है, मां का आज्ञाकारी है लेकिन अपने प्रेम और प्रजा के लिए लड़ना जानता है। ऐसे ही, दृश्यम का विजय सामान्य आदमी है लेकिन अपने परिवार के लिए लड़ना जानता है ।
सीता रमण भी एक ऐसी फिल्म है, जहां हीरो राम है, हीरोइन सीता है और हीरो का मित्र हनुमान है । हां, रामायण के पात्रों के नाम पर भी अच्छी फिल्में बनाई जा सकती हैं । राम युद्ध लड़ता है लेकिन शालीनता और सहानुभूति नहीं छोड़ता, वह पराक्रमी है लेकिन राक्षस नहीं है। प्रेम करता है लेकिन अर्धनग्न लड़कियों का पीछा नहीं करता। सीता बड़े राज-परिवार की है, लेकिन राम के साथ नंगे पैर जंगल चली जाती है। सीता रमण की प्रेम कहानी वास्तविक है, जिसे चटपटा बनाने के लिए रावण और सीता के ड्रीम सीक्वेंस की जरूरत नही पड़ती। कहानी में विरह है, आंसू हैं, प्रतीक्षा है, विश्वास है, और मिलन भी है। फिल्म में रावण की तरह बुराई बहुत प्रबल है लेकिन अच्छाई फिर भी जीत जाती है। बहुत समय बाद एक ऐसी फिल्म देखी जिसकी समाप्ति होने से पहले ही दूसरी बार देखने की इच्छा प्रबल हो गई ।