पटाखों से मुझे बहुत डर लगता है, फिर भी बचपन में मैं दशहरा का बेसब्री से इंतेज़ार करता था । दशहरे के 10-15 दिन पहले ही छोटे पटाखे, और पटाखे वाली गन ले आता था । ये खिलोने लगभग दीपावली के 10 दिन बाद तक चलते थे । जहां दीपावली वयस्कों के लिए 5 दिन का त्योहार है वहीं बच्चों के लिए लगभग एक महीने का है । जिन बच्चों को पटाखे पसंद हैं, उनके लिए ये त्योहार और भी बड़ा है ।
बच्चे संस्कृति का लिंक हैं जिनसे होकर यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान की तरह ये प्रवाह करती है । अगर ये लिंक तोड़ दी जाए तो संस्कृति अपने आप लुप्त हो जाएगी।
जहाँ फ़ैक्ट्रीज़ गंगोत्री की तरह गंगाजल दे रही हों । औटोरिक्शा घी से चलते हों और फसलों के अवशेष यूँ ही मनमर्ज़ी कभी भी जला दिए जाते हों वहाँ पर्यावरण के लिए सजग होना ज़रूरी है ।
पर्यावरण की मुझे भी चिंता है। और हो भी क्यों ना? ऐसे देश में जहाँ पर हर जगह पोलिथिन, फूल और कलियों की तरह सौंदर्य बिखेर रही हों। पुराने ट्रक ऑक्सिजन उगल रहे हों। चिमनियाँ हवन की तरह वातावरण शुद्ध कर रहीं हों। फ़ैक्ट्रीज़ गंगोत्री की तरह गंगाजल दे रही हों । औटोरिक्शा घी से चलते हों और फसलों के अवशेष यूँ ही मनमर्ज़ी कभी भी जला दिए जाते हों वहाँ पर्यावरण के लिए सजग होना ज़रूरी है । लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इतने सारे धुँध में दोषी बस पटाखे ही दिखते हैं ।
बच्चे संस्कृति का लिंक हैं जिनसे होकर यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान की तरह ये प्रवाह करती है । अगर ये लिंक तोड़ दी जाए तो संस्कृति अपने आप लुप्त हो जाएगी। इसलिए कभी पटाखे, कभी रंग, कभी पानी का बहाना बनाकर एक योजनाबद्ध पद्धति से धीरे-धीरे सभी त्योहारों और रीतियों को निशाना बनाया जा रहा है । जिस तरह हमारे प्राचीन विद्यालय और गुरुकुल प्रणाली समाप्त करके हमें मानसिक रूप से दास बनाया गया उसी तरह हर त्योहार का विरोध करके हमारी संस्कृति को अपाहिज बनाने का प्रयास किया जा रहा है ।
मैं सहिष्णु (tolerant) हूँ इसलिए जब मेरे मंदिर तोड़ दिए गए थे, तब मैंने अपने घर में विद्यालय, मंदिर, नृत्यशाला, और योगशाला आदि बना लिए थे। मैं आज भी सहिष्णु हूँ इसलिए उनका हर ज्ञान हर त्योहार पर शान्त स्वभाव से झेल लेता हूँ। मैं पटाखे छोड़कर आगे देखना चाहता हूँ । अपने बच्चों को दीपावली पर दीये का प्रकाश दिखाऊँगा, नए वस्त्र दिलाऊँगा, कुछ उपहार दूँगा या फिर राम की कहानियाँ सुनाऊँगा और कहूँगा कि जब तक अति ना हो जाए संयम रखना है । और जब लक्ष्मण-रेखा पार हो जाए, लंका डहा देनी है ।
दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ !