चंद्रयान -3 #Chandrayaan3

समय यूंही पंख लगाकर उड़ जाता है। कभी आकाश में इतने तारे होते थे कि खाली आकाश मुश्किल से दिखता था, आज तारे देखने के लिए आंखें तरस जाती हैं। कभी आकाश में गिरता उल्कापिंड एक आत्मा होती थी जो मरने से जन्म लेने तक का सफर तय कर रही होती थी, अब आत्मा जीवित […]

अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च

मेरी बड़ी बेटी धृति लगभग ३ वर्ष की थी जब मैं उसके साथ एक शाम को हैदराबाद की एक गली में घूम रहा था। धृति ने जैसे ही एक चींटे को देखा, वो उसे मारने लगी। मैंने उसे समझाया कि ये भी हमारी तरह जीव है और इसे भी पीड़ा होती है। धृति का ये […]

पटाखे – Fire Crackers

पटाखों से मुझे बहुत डर लगता है, फिर भी बचपन में मैं दशहरा का बेसब्री से इंतेज़ार करता था । दशहरे के 10-15 दिन पहले ही छोटे पटाखे, और पटाखे वाली गन ले आता था । ये खिलोने लगभग दीपावली के 10 दिन बाद तक चलते थे । जहां दीपावली वयस्कों के लिए 5 दिन […]

मिट्टी के घर

बचपन के “मिट्टी के घर” वाले खेल में बहुत कुछ छुपा था । हम घंटो मेहनत करके एक घर बनाते थे। दूसरे दिन हमें फिर ऐसा लगता था कि शायद कुछ कमीं रह गयी, तो मिटाकर दूसरा बनाते थे। और तब तक ऐसा करते रहते थे जब तक संतुष्ट नहीं होते थे। जब मन का […]